आदिवासियों की जान ईतनी सस्ती क्यों हो गयी है ?
|नक्सल उन्मूलन के नामपर बस्तर मे तैनात फ़ोर्स छत्तीसगढ़ और केन्द्र की सरकार की शय पर किस तरह का ” खूनी खेल ” खेल रही है । उसका एक उदाहरण है — हेमला बुधु की मुठभेड । ——–हेमला बुधु पिता मंगू निवासी सावनार ( तब उम्र २५ ) को इसी साल के जनवरी माह को पुलिस व सीआरपीएफ की संयुक्त पार्टी सर्चिंग के दौरान बीजापुर जिले के गंगालूर थाना क्षेत्र के ग्राम तोड़का के जंगल के पास शुक्र वार को पुलिस व नक्सलियों के बीच मुठभेड़ के बाद कथित रूप से रंगे हाथ पकड़ लिया था ।जबकि इसी हेमला बुधु पिता मंगू निवासी सावनार( इस बार उम्र २०) को २५-२६ अप्रैल को बीजापुर जिले के गंगालूर थाना क्षेत्र के तोढका और सावनार के मध्य स्थित जंगल में पुलिस की सर्चिग पार्टी और नक्सलियों के बीच हुई मुठभेड़ दौरान मारना बताया जा रहा है । मौके से पुलिस ने कथित रूप से हथियार और गोला बारुद बरामद किया है।
जबकि इस मामले मे मिडिया की रिपोर्ट के अनुसार छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिला अंतर्गत गंगालूर के सावनार का निवासी हेमला बुधु जगदलपुर का छात्र था । छुट्टी पर घर आया हुआ था और आम खाने पास के जंगल गया था । जिसे पुलिस द्वारा फर्जी मुठभेड़ में मार कर नक्सली का नाम दिया गया । ग्रामीण एवं परिजन पूरी तरह से इसे फर्जी मुठभेड़ बता रहे हैं । तो फिर पुलिस ने किस हमला बुधु को पकड़ रखा था, वह अभी कहाँ है ??? और उसके बदले इस निरीह छात्र को मारने के षडयंत्र के पीछे क्या उद्देश्य है ??? इस बात की जांच जब तक किसी न्यायाधीश से नही करायी जायेगी , तब तक दोषियों को सजा मिलने की गुन्जाईश वैसे ही नही है जैसे कि अब-तक ऐसी ही फर्जी मुठभेड़ मे मार दिये गये सैकड़ों ग्रामीणों के मामले मे हुआ है । समझ में नही आता कि आदिवासियों की जान ईतनी सस्ती क्यों हो गयी है ?????
समाचार सहयोगी : कमल शुक्ल
प्रभात सिंह , दंतेवाड़ा