किसानों का जीवन रक्षक साबित हो सकता है पीपीपी मॉडल !
|खाद्य नुकसान मामले में विश्व में शीर्ष पर है भारत !
Mumbai : सरकारेें अपने सही गलत काम को या तो महिमा मंडित कराने पर तुली हैं या आरोपों का जवाब देने में समय गवाॅ रहीं हैं जबकि देश में आम आदमी भूख-प्यास से आज भी संघर्ष करते हुए जीने को विवश है।जिस किसान की फसल मौसम की मोहताज थी वह आज भूखमरी का शिकार है क्योंकि भगवान को उस पर तरस नही आया और वह गरीब खुद्दार फिर हल लेकर धरती का सीना , चीर कर कुछ पाने के लिये पसीना बहा रहा है! अनाज देश में भरा पड़ा है,पर वह गोदामों में है वह भी सस्ते दामो पर हथियाया हुआ ! आज़ादी के बाद से अब तक लगभग सात दशकों में भारत ने खाद्य सुरक्षा की दिशा में सकारात्मक वृद्धि की है।
इसकी आबादी जहाँ तीन गुना बढ़ी है, वहीं खाद्य उत्पादन में चार गुना वृद्धि दर्ज की गई है। भारत में फसल की पैदावार, विकसित और अन्य विकासशील देशों से प्राप्त बेहतर स्थायी फसल का 30% से 60% है। भारत जहाँ इस ओर बेहतर परिणाम की कल्पना करता है, वहीं कमजोर अवसंरचना, असंगठित खुदरा मूल्य और कटाई के बाद के खाद्य रखरखाव व उचित भण्डारण के अभाव में खाद्य नुकसान के कारण विश्व में यह खाद्य नुकसान के मामले में शीर्ष पर है।
कृषि को उद्योग का दर्जा मिलना जरुरी!
भारत में, जिसकी 60% आबादी कृषि पर आधारित है, बदलते प्राकृतिक परिवेश, सिंचाई, गिरते जलस्तर, कीटनाशक आदि कारकों के कारण कृषि उत्पादन को लेकर चिंताएँ बढ़ी हैं। इसलिए किसानों में कृषि के प्रति उत्साह लगातार कम होता जा रहा है, वहीं यह भी देखा गया है कि अभावों में रह रहे किसान आत्महत्या तक कर रहे हैं। इन परिस्थितियों ने कृषि में जोखिम को बढ़ाया है, इसलिए यह आवश्यक है कि इसे आधुनिक तकनीकि और नई नीतियों द्वारा लाभकारी बनाने की दिशा में काम किया जाए। ऐसे में सभी कृषि हितधारकों की सामूहिक शक्ति को एकत्र करते हुए सार्वजनिक-निजी भागीदारी के मॉडल को अपनाकर इस क्षेत्र में संभावनाओं के नए अवसर पैदा किए जा सकते हैं।
जो सरकारी सहयोग, निजी क्षेत्र और किसानों के योगदान से न सिर्फ कृषि क्षेत्र को बढ़ावा देगा बल्कि गाँवों के विकास और भारत में गरीबी उन्मूलन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। पीपीपी के माध्यम से भारत में खाद्य प्रसंस्करण को बढ़ावा मिलेगा जो खाद्य पदार्थों को लम्बे समय तक खाने योग्य बनाए रखने में, उसकी गुणवत्ता और पोषक तत्त्व बनाए रखने में मदद करेगा। इससे न सिर्फ खाद्य पदार्थों को खराब होने से बचाया जा सकेगा बल्कि किसानों के बीच आर्थिक समृद्धता के भी अवसर पैदा होंगे। इसमें इस बात का ध्यान रखना जरूरी होगा कि कृषि विस्तार सेवाओं में बिचौलियों से बचा जा सके और आपूर्ति शृंखला बाधित न हो।
कृषि विकास को सार्वजनिक-निजी भागीदारी परियोजना से उम्मीद !
पीपीपी अत्याधुनिक तकनीकि के माध्यम से भारतीय कृषि को अपार ऊँचाइयों तक पहुँचाने में अपनी मदद कर सकता है। सूचना प्रौद्योगिकी और जैव प्रौद्योगिकी के कारण किसानों को ना सिर्फ जागरूक किया जा सकेगा बल्कि कृषि उत्पादन में भी वृद्धि होगी। इसके द्वारा किसानों को मौसम के मिज़ाज, उर्वरक उपयोग, कृषि सम्बन्धी विभिन्न नवीन तकनीकियों और उपकरणों की जानकारी, बोवाई और जोत में अंतर, आधुनिक किस्म के प्रभावी बीज की नवीनतम जानकारी फोन पर उपलब्ध कराई जा सकेगी। भारतीय कृषि और किसान अभी आकस्मिक बदलते मौसम और पर्यावरण से प्रभावित हैं, जो कृषि उत्पादों के लिए किसी आपदा से कम नहीं है। सूखा और बाढ़ जैसी असंतुलित स्थितियों ने भारत में व्यापक स्तर पर इससे जुड़े लोगों को प्रभावित किया है।
सह-निवेश के माध्यम से एकीकृत मूल्य शृंखला विकसित होने का भरोसा !
जिस देश में रोज किसान मर रहे हैं, वहाँ प्रकृति के प्रकोप के खिलाफ पीपीपी मॉडल जीवन रक्षक साबित हो सकता है। इस दिशा में महाराष्ट्र सरकार ने समन्वित कृषि विकास के लिए महाराष्ट्र सार्वजनिक-निजी भागीदारी परियोजना (PPPIAD) की शुरुआत की है। इस पहल के अंतर्गत महाराष्ट्र, चयनित फसलों पर पीपीपी और सह-निवेश के माध्यम से एकीकृत मूल्य शृंखला विकसित कर रहा है। यह परियोजना विश्व आर्थिक निकाय (वर्ल्ड इकॉनोमिक फोरम) के महत्त्वाकांक्षी दृष्टिकोण के उद्देश्य से कृषि के विकास के लिए काम कर रही है। 2012-13 में 11 परियोजनाओं के साथ शुरू हुई यह परियोजना अब 33 हो चुकी है, जिसमें लगभग 60 कम्पनियाँ अपनी हिस्सेदारी कर रहीं हैं। इसका उद्देश्य 2020 तक 50 हजार किसानों तक पहुँचना है। महाराष्ट्र में शुरू कि गई इस परियोजना को भारतीय कृषि के लिए एक अवसर के रूप में देखा जाना चाहिए, जो नवीनीकरण और ग्रामीण अर्थव्यवस्था के कायाकल्प और समावेशी सतत विकास के लिए महत्त्वपूर्ण कदम साबित होगा ।
Vaidambh Media