जीविका संघर्ष में विदेशिया की ताकत है भोजपूरी फोकःसुरभि
|भोजपूरी में कला व संस्कृति की अंतहीन परम्परा रही है। मनुष्य जहाॅ भी गया उसके श्रमराग ही उसके साथ रहा। हर दुःख-सुख में वह इन्हें अपना सच्चा मीत मानकर गुनगुनाता रहा। आज वही मीत, विरहन क साथ-साथ ,परदेश में रह रहे पति को कैसे सहारा दे रहा है, पुरुषों के जीविका संघर्ष में पलायन का दर्द तथा उनकी विवशता के बीच परिवार की यादों को लोकपरम्परा के गीतों में सुरक्षित रख पाने के अद्भुत प्रयास को दिखाती है विदेशिया इन बम्बई।
गेरखपुर में आयोजित 9वें प्रतिरोध का सिनेमा में प्रदर्शित की गई। इस फिल्म के विषय पर निर्देशिका सुरभि शर्मा से बातचीत किया Vaidambh.in के धनंजय बृज नें, प्रस्तुत हैं प्रमुख अंश-
विदेशिया इन बम्बई कहाॅ ले जाती है ?
भाषाई विकास में हम चाहे जितना शेाध कर लें लेकिन जिस आबो हवा, मिट्टी में हम पले-बढ़े होते हैं उसकी अपनी क्षमता होती है। कहीं जायें मातृ भाषा से दूर नही हो सकते। यही वह अमूल्य धन है जिससे ब्यक्ति विरत नहीं होता। घर- परिवार छोड़ धन की आस लिये बम्बई आया कामगार तथा गुलामी के दौर में सदी पूर्व जबरिया वतन छोड़ने पर मजबूर किये गये मजदूर दोनों के विरह गीत के भाव एक ही हैं। इनके पास अपनी भाषा व संस्कृति को अपने अंदाज मे संजोने की कला है, इसी तरफ ध्यान आकृष्ट करती है विदेशिया इन बम्बई।
विदेशिया इन बम्बई में खास क्या है ?
भोजपुरियों की पहचान उनके क्षेत्रिय संगीत से है। आज हिन्दी सिनेमा का काम बिना इसके तड़के के नहीं हो सकता। मारिशस, त्रिनिदाद,मलेशिया अन्य अफ्रिकी देशों में भोजपूरी का परम्परागत लोक संगीत जिन लोगों के बीच पुष्पित-पल्लवित हो रहा है वे भारतीय नहीं हैं बल्कि भारतीय मूल के माइग्रेट हो चुके कामगार है जिन्हे संगीत की गूढ़ता पता नहीं लेकिन अपने स्तर पर भोजपूरी फोक की एक भरी पूरी इंण्डस्ट्री बना रखें है। इसी तरह बम्बई में मइग्रेशन का दर्द झेल रहे भोजपुरिया, बिल्डिंग कंस्ट्रक्सन तथा म्युजिक इंडस्ट्री साथ -साथ चला रहें हैं। इनके काम का ढंग,अपनी मस्ती के लायक गीत-संगीत उसके अनुभवहीन लेखक, टूटती फिर खड़ी होती अवैध कालोनियाॅ। इन सब के बीच पत्नी ,माॅ,परिवार को संगीत में याद करता कामगार ,सब खास है।
विदेशिया का मतलब ?
मैं स्पष्ट कर दूं कि विदेशिया से मेरा तात्पर्य माइग्रेट कामगार पुरूष से है। किसी तरह की साहित्यिक बहस से इसका कोई लेना देना नही है। इसमें विदेशिया वह है जो रोजी के लिये अपने परिवार से सैकड़ो कोस दूर है, वह पत्नी व परिवार से मिलने की तड़प स्वनिर्मित गीतों से न केवल अपने बल्कि अपने जैसे सैकड़ो को सुनाता है।
अश्लीलता परोसने वाले लोगों से भोजपूरी का सम्मान है !
¨भोजपूरी गीत¨ में महिलायें चाहे वह लोक गेीत हो या देवी गीत अपने पति के सलामती की दुआ करती है। जिन्हे मुम्बई के कामगार उसी तर्ज पर पति के तरफ से गीत लिखते और गाते है । कामगारो के संगीत में जो कुछ है वह स्मृति पर आधरित है। वह जितना जानते है उसी में मगन हैं। भाषा विकास व उसका सम्मान बौद्धिक बहस का मुद्दा है। इनके गीत- संगीतं ,आटों डाईवर, गारा-माटी, पेण्ट-पाॅलिस करने वालों के बीच बनता और सुना जाता है। यही लोग निर्गुण के भी स्रोता हैं। आप उनके संगीत पर हाय तौबा के बजाय अपना अच्छा वाला प्रयास करिये तो वह आपके साथ भी खड़े रहेंगे।
कब लगा कि इस मुद्दे पर फिल्म बनानी चाहिए ?
मुम्बई में एक कार्यक्रम के दौरान त्रिनिदाद से आये भारतीय मूल के लोगों के बीच कुछ भोजपूरी में गा रहे थे,इस पर उनमें से कुछ लड़कियाॅ हॅस पड़ी; मैने कारण पूछा तो उन्होने बताया कि इस संगीत में जो विदेशिया हम प्रश्न गाते हैं ये उसका उत्तर गा रहें हैं। इसका मतलब हर सवाल का जवाब है और हर गाने का निहितार्थ भी। तब मैने ठान लिया कि जो आज के विदेशिया है,भोजपुरिया पुरूष कामगार;उनकेे बीच उनकी रोज उजड़ती-बसती जिंदगी में फोक के क्या मायने हैं ,इसे लोगों के सामने लाया जाय।
आप पंजाब की हैं,मुम्बई में रहती हैं फिर भोजपूरी की तरफ झुकाव कोई विशेष बात !
पलायन के दर्द में फाकामस्त ¨भोजपुरिया कहीं भी डटा है तो उसमें उसके संगीत ने उसे बल दिया है। इसके जरिये वह खुद को समझने मे सफल रहता है। मुम्बई में ¨भोजपुरी संस्कृति व संगीत पूरी तरह रच- बस गया है। जिसे कभी खत्म नहीं किया जा सकता है। राजस्थान,पंजाब में फोक कल्चर को बचाने के लिए जद्दो- जेहद करनी पड़ रही है। वही ¨भोजपुरी फोक कल्चर दरख्त की शक्ल अख्तियार कर चुका है, जिसकी शाखे विस्तार करती जा रहीं है। इसके जीतने करीब जायेंगेे उतना ही दिलचस्पीं बढ़ती जाती है। फोक ट्रेडीशन म्यूजिक इंडस्ट्रीज में तब्दील हो चुका है। टैक्सी ड्राइवर से लगायत तमाम कामगार ने फोक भोजपुरी कल्चर को मंच दिया है। इस पर राजनीति भेी खूब हुई, लेकिन इसके बावजूद यह घटने के बजाय ब़ढता गया। इन सभी चीजो ने मुझे फिल्म बनाने केलिए प्रेरित किया।
फिल्म में महिलाओं को स्थान नही दिया आपने?
हमारा प्रयास विदेशिया को प्रकाश मे लाना था। वह जो अपनों से दूर, आधुनिक मोबाइल से जुड़ा, अजनबी शहर में खुद भी अवैध ठहराया जाता, निर्मित व ध्वस्त होती कालोनियाॅ भी अवैध, जहाॅ वह पसीना बहाता है फिर भी सबकुछ वैध ठहराने की जिद लिये विदेशिया अपने संगीत में मगन है। ऐसे में महिला का कोई रोल मेरे फ्रेम मे नहीं था।
आगे क्या करना है?
यह मेरी पहली फिल्म है जो पुरूषों पर आधारित है।इसके पूर्व महिलाओं पर बेस करती जरी-मरी बना चुकी हूॅ ,यह मुम्बई स्लम एरिया मे महिला जीवन संघर्ष पर आधरित है। आगे इच्छा है कि भोजपूरी में विदेशिया की स्थिति तो जान ली, अब उसके घर व घरवाली का जीवन संघर्ष देखा जाय।
प्रस्तुति: धनन्जय ब्रिज