वैश्विकरण का नंगा सच , सीरिया संकट !
| 2011 से ही राजनीतिक तौर पर अस्थिर सीरिया इक्कीसवीं सदी की अब तक की सबसे बड़ी मानवीय तबाही झेल रहा है। तीन लाख से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं। एक करोड़ से ज्यादा लोग जान बचा कर दूसरे देशों में पनाह ले चुके हैं और शरणार्थी का दर्जा पाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। दूसरे विश्व युद्ध के बाद 1948 से 1967 के बीच संयुक्त राष्ट्र में मानवाधिकारों को लेकर कई समझौते हुए। शरणार्थियों के संबंध में 1951 के जिनेवा समझौते में प्रावधान किया गया है पर आज इस प्रावधान का कुछ स्वार्थाी देशों के लिये कोई मोल नहीं ! उनका बस एक ही मकसद है, मानवता कराहती रहे पर वैश्विकरण के नाम पर धर्म -जाति का लिबास ओढ़ाकर आहुति देते रहियें और ग्लोबलाइजेशन का नारा लगाते रहिये !
तीन साल के बच्चे की लाश मुर्दा विश्व को जगााने का प्रयास करती रही !
New Delhi: तुर्की के समुद्र किनारे एक रिसॉर्ट के पास औंधे मुंह पड़ी तीन साल के बच्चे की लाश ने पूरी दुनिया को द्रवित कर दिया है। एलन कुर्दी नाम के इस बच्चे के माता-पिता अपने परिवार के साथ सीरिया के गृहयुद्ध से जान बचा कर भागे थे। एक छोटी-सी नाव पर सवार होकर पूरा परिवार कहीं किसी दूसरे देश में शरण पाने की आस लेकर चला था। वे किसी यूरोपीय देश में शरण लेकर अपना भविष्य सुरक्षित करना चाहते थे। समुद्र की लहरों ने बीच रास्ते में किश्ती डूबो दी।
एलन कुर्दी समेत उसके सभी भाई-बहन समुद्र में डूब गए। एलन का शव बहता हुआ तुर्की के समुद्र तट पर आ लगा था। तब तुर्की की डोगन न्यूज एजेंसी की रिपोर्टर निलोफर डेमिर ने यह मार्मिक तस्वीर खींची और सोशल मीडिया पर डाल दी थी। वे तुर्की के सीमांत शहर बोडरम में पिछले तीन वर्ष से सीरिया के शरणार्थियों की स्थिति को लेकर समाचार देती रही हैं। सीरिया के शरणार्थी तुर्की के इसी समुद्री रास्ते से यूरोप के किसी देश में शरण के लिए कूच करते हैं। सोशल मीडिया पर यह तस्वीर प्रसारित करने का उनका मकसद था कि इससे दुनिया को पता चल सके कि सीरिया के लोग किन स्थितियों से गुजर रहे हैं।
शरणार्थी एक बड़ी समस्या !

A Syrian refugee reacts as he waits behind border fences to cross into Turkey at Akcakale border gate in Sanliurfa province, Turkey, June 15, 2015.
नस्लीय, धार्मिक, राष्ट्रीयता, राजनीतिक भेदभाव के कारण अगर कोई व्यक्ति अपने देश लौटने में असमर्थ है, तो उसे उस देश में शरणार्थी का दर्जा मिल सकता है, जहां वह रह रहा है। तसलीमा नसरीन ने इसी आधार पर भारत से नागरिकता मांगी थी, लेकिन भारतीय कट््टरपंथी मुसलिमों के दबाव में भारत सरकार ने उन्हें नागरिकता नहीं दी। वे अब स्वीडन की नागरिक हैं, लेकिन लंबी वीजा अवधि पर ज्यादातर भारत में ही रहती हैं। शरणार्थी एक बड़ी समस्या हैं। भारत 1970-71 में बांग्लादेश से बड़ी तादाद में आए शरणार्थियों की वजह से पैदा हुई समस्या को झेल चुका है। इसलिए तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने बांग्लादेश के शरणार्थियों के कारण भारत पर आर्थिक बोझ का उल्लेख किया था। यूरोपीय देश भी आर्थिक और सांस्कृतिक बोझ बढ़ने के कारण सीरियाई शरणार्थियों को शरण देने का विरोध कर रहे हैं। इसलिए समुद्र के रास्ते अवैध रूप से यूरोपीय देशों में सीरियाई नागरिकों का प्रवेश हो रहा है।
किसी भी अन्य धर्मों से ज्यादा बड़ा है सुन्नी-शिया विवाद !
सीरिया की मौजूदा राजनीतिक अस्थिरता मार्च, 2011 में तब शुरू हुई थी जब कुछ युवाओं ने दीवारों पर सरकार-विरोधी नारे लिख दिए। पिछले चालीस वर्ष से असद परिवार सीरिया का शासक है, इसी परिवार के बशर-उल-असद मौजूदा राष्ट्रपति हैं। सुन्नियों का बहुमत होने के बावजूद राष्ट्रपति शिया हैं। यह समस्या सभी मुसलिम देशों की है। सुन्नी-शिया विवाद किसी भी अन्य धर्मों से ज्यादा बड़ा है। इराक की समस्या भी यही थी। वहां सुन्नी शासक सद्दाम हुसैन को शियाओं और कुर्दों को लेकर परेशानी रहती थी, जिसका लाभ उठा कर अमेरिका ने हमला बोल दिया था। सीरिया में असद शासन के खिलाफ नारे लिखने वाले सभी युवक सुन्नी समुदाय के थे। सुन्नियों में रोष की ताजा वजह बशर-उल-असद की ओर से सभी सरकारी संसाधनों का लाभ सिर्फ शियाओं तक पहुंचाना है, जिसके चलते सुन्नियों, कुर्दों और यजीदियों का जीना दूभर हो गया है। पिछले आठ साल के सूखे ने ग्रामीणों का जीवन मुश्किल कर दिया है और उनका शहरों में पलायन हो रहा है। उनका जीवन स्तर गिरता गया है।
सऊदी अरब – ईरान के धु्रवीकरण में पिसता सीरिया !

Syrians entering Hungary at Syrian border in August. ‘The Guardian reported this week from the German town of Landshut.
दीवारों पर असद-विरोधी नारे लिखने की शुरुआत सीमांत शहर ‘दार’ से हुई थी। अगले ही दिन वहां की पुलिस ने सुन्नी समुदाय के पंद्रह युवाओं को गिरफ्तार कर लिया और थाने ले जाकर उन पर अत्याचार किए गए। थर्ड डिग्री का इस्तेमाल करते हुए उनके नाखून तक उखाड़ लिए गए। यह घटना 11 मार्च, 2011 की है। अगले ही दिन ‘दार’ में पुलिस अत्याचारों के खिलाफ जलूस निकला। तीन-चार दिन में विरोध के स्वर सीरिया के अन्य शहरों और गांवों में भी फैल गए। बशर-उल-असद समझ गए थे कि लंबे समय से दबा हुआ आक्रोश अब खुल कर सामने आ गया है, इसलिए उन्होंने इस आक्रोश को दबाने के लिए हिंसा का सहारा लिया। शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों पर गोलीबारी शुरू कर दी गई। इस पर पुलिस और फौज के खिलाफ सुन्नियों ने भी विद्रोह कर दिया। शियाओं और सुन्नियों के बीच सीधी लाइन खिंच गई। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि ईरान का समर्थन पाने के लिए बशर-उल-असद ने रणनीति के तहत धु्रवीकरण किया। अब ईरान की ओर से सीरिया की असद सरकार को समर्थन मिल रहा है और बागियों को सऊदी अरब और कतर से समर्थन मिल रहा है। इन तीनों देशों के हजारों मरजीवड़े सीरिया के खूनी संघर्ष में शामिल हैं।
क्या अमेरिका, सीरिया को बाजार की तरह इस्तेमाल कर रहा है !
पिछले तीन वर्षों से सीरिया गृहयुद्ध का शिकार है, जहां हर रोज सैकड़ों लोग बम धमाकों में मारे जा रहे हैं। अभी हाल में खबर आई कि विद्रोहियों की ओर से इस्तेमाल की जा रही विस्फोटक सामग्री और हथियार अमेरिका के कारखानों में बने हुए हैं। सवाल है कि क्या अमेरिका की ओर से सीरिया को बाजार की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है। अमेरिका अफगानिस्तान और इराक से निकल चुका है, लेकिन अल-कायदा के लोग दोनों जगहों पर मौजूद हैं। अल-कायदा के नए रूप आइएसआइएस ने इराक के एक तिहाई हिस्से पर कब्जा कर रखा है। उसने अपना नाम बदल कर आइएसआइएस (इस्लामिक स्टेट आॅफ इराक ऐंड सीरिया) कर लिया है।
यजीदी व कुर्दिश ही निशाने पर क्यों ?
आइएस का मुख्य अभियान इराक और सीरिया के उन पहाड़ी इलाकों में चल रहा है, जहां यजीदी समुदाय के लोग रहते हैं। संयुक्त राष्ट्र ने यजीदी समुदाय को अलग आदिवासी समुदाय की मान्यता दी है। ये कुर्दों के पूर्वज हैं, जिन यजीदियों ने इस्लाम धर्म अपना लिया, उन्हें कुर्दिश कहा जाता है। कुर्द हालांकि मुसलमान हैं, लेकिन सुन्नी उन्हें भी अपना नहीं मानते। यजीदियों का पुराना धर्म यजीदीवाद है। इराक के अलावा जर्मनी में सर्वाधिक संख्या में यजीदी रहते हैं। अर्मेनिया, तुर्की, सीरिया, ईरान, जार्जिया, स्वीडन और नीदरलैंड में भी कहीं-कहीं रहते हैं। पूरी दुनिया में इनकी आबादी चौदह-पंद्रह लाख से ज्यादा नहीं है।
शैतान है यजीदी समुदाय ?

Among the many victims of the advance of The Islamic State (IS) in the Middle East are a group of up to 50,000 Yazidis, who are trapped in the mountains in northwest Iraq without food or water
संयुक्त राष्ट्र ने यजीदियों को दुर्लभ आदिवासी समूह की मान्यता दी है। सुन्नियों का मानना है कि कुरआन में जिस शैतान का जिक्र आया है, वह शैतान यही यजीदी समुदाय है। इसलिए अफगानिस्तान के बामियान में बुद्ध की मूर्तियां तोड़े जाने के बाद अब इस्लामिक कट्टरपंथी आदिवासी यजीदी समुदाय को समाप्त करने पर तुले हैं। आइएसआइएस इराक और सीरिया से गैर-मुसलिमों का सफाया करने के अभियान में सर्वाधिक कत्लेआम यजीदी समुदाय का कर रहा है। पिछले दिनों इराक की संसद में यजीदी महिला सांसद वियान दखिल यह अपील करते हुए फफक-फफक कर रो पड़ीं कि उनके समुदाय की औरतों और बच्चों को आइएसआइएस से बचाया जाए।
खौफ ! जान बचा कर भाग रहे हैं यजीदी – कुर्दिश !
यजीदी समुदाय के आध्यात्मिक नेता बाबा शेख ने पिछले दिनों न्यूयार्क टाइम्स को दिए इंटरव्यू में कहा कि ‘इस्लामिक कट्टरपंथियों के उभार के बाद करीब सत्तर हजार यजीदी यूरोपीय देशों में पलायन कर गए हैं।’ उन्होंने आतंकियों के हमले के डर से यजीदियों के पवित्र स्थल लालेश मंदिर में वार्षिक धार्मिक समारोह बंद कर दिया है। उत्तरी इराक के यजीदी आबादी वाले शहर सिंजर पर आइएसआइएस का कब्जा हो गया है और यजीदियों ने भाग कर लालेश में पनाह ली है। यजीदियों का एक प्रतिनिधिमंडल कुछ माह पहले भारत का समर्थन पाने के लिए यहां भी आया था। सीरिया से यजीदी, कुर्दिश जान बचा कर भाग रहे हैं। शिया और सुन्नियों की खुलेआम हो रही जंग से सुन्नी भी अब खफा हो गए हैं। वे यूरोपीय देशों में पनाह पाने की कोशिश कर रहे हैं। कुछ यूरोपीय देश दिल खोल कर शरणार्थियों का स्वागत कर रहे हैं। जैसे आस्ट्रिया और जर्मनी ने अपने दरवाजे खोले हैं। जॉर्डन और लेबनान ने सीरियाई शरणार्थियों के लिए पहले से ही दरवाजे खोले थे। लेकिन ये दोनों छोटे देश हैं, इनकी क्षमता समाप्त हो चुकी है।
दुनिया में तबाही का आलम, उपाय तलाशने जरूरी !
अब तक करीब चालीस लाख शरणार्थियों ने खुद को संयुक्त राष्ट्र में पंजीकृत करवाया है, लेकिन अनुमान है कि पलायन करने वालों की संख्या एक करोड़ से ज्यादा है। सीरिया में कुछ वैसा ही हो रहा है, जैसा दो दशक पहले रवांडा में हुआ था। शायद रवांडा के बाद यह दूसरा जनसंहार है। रवांडा में चौदह प्रतिशत आबादी वाले टूरसी समुदाय के आठ लाख लोगों का जनसंहार हुआ था। अगर आइएसआइएस के खौफ से दुनिया में इस कदर तबाही का आलम है, तो उससे पार पाने के लिए उपाय तलाशने जरूरी हैं। सीरिया में लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा के लिए आवाजें उठ रही हैं, तो उन्हें इस तरह दबा दिया जाना ठीक नहीं।
Vaidambh Media