स्त्रि वामांगी बन , पुरुष को बनाती है पूर्ण !
|विवाह के बाद स्त्री , पुरूष के वाम भाग में प्रतिष्ठित होती है
Varanasi: शादी का मौसम है , हिन्दू धर्म में पत्नि का स्थान वामांगी होता है। यह पति पर स्त्रि का अधिकार व पति के मनुष्य होने का प्रतीक है. इस बात को नवदम्पति को जानना व उसे स्वीकार करना अति आवश्यक है। आज दाम्पत्य जीवन में जो रिश्तों की खटास दिख रही है उसे देखते हुए यह समाज के लोगों को समर्पित है…
महाभारत शांतिपर्व 235.18 के अनुसार पत्नी -पति का शरीर ही है और उसके आधे भाग को अर्द्धागिनी के रूप में वह पूरा करती है। “अथो अर्धो वा एव अन्यत: यत् पत्नी” अर्थात पुरूष का शरीर तब तक पूरा नहीं होता, जब तक कि उसके आधे अंग को नारी आकर नहीं भरती। पौराणिक आख्यानों के अनुसार पुरूष का जन्म ब्रह के दाहिने कंधे से और स्त्री का जन्म बाएं कंधे से हुआ है, इसलिए स्त्री को वामांगी कहा जाता है और विवाह के बाद स्त्री को पुरूष के वाम भाग में प्रतिष्ठित किया जाता है। सप्तपदी होने तक बधू को दाहिनी ओर बिठाया जाता है, क्योंकि वह बाहरी व्यक्ति जैसी स्थिति में होती है। प्रतिज्ञाओं से बद्ध हो जाने के कारण पत्नी बनकर आत्मीय होने से उसे बाई ओर बैठाया जाता है। इस प्रकार बाई ओर आने के बाद पत्नी गृहस्थ जीवन की प्रमुख सूत्रधार बन जाती है और अधिकार हस्तांतरण के कारण दाहिनी ओर से वह बाई ओर आ जाती है। इस प्रक्रिया को शास्त्र में आसन परिवर्तन के नाम से जाना जाता है। अन्य हिन्दू शास्त्रों में स्त्री को पुरूष्ज्ञ का वाम अंग बतलाया गया है।
साथ ही वाम अंग में बैठने के अवसर भी बताए गए है। “वामे सिन्दूरदाने च वामे चैव द्विरागमने, वामे शयनैकश्यायां भवेज्जाया प्रियार्थिनी” अर्थात सिंदूरदान, द्विरागमन के समय, भोजन, शयन व सेवा के समय में पत्नी हमेशा वामभाग में रहे। इसके अलावा अभिषेक के समय, आशीर्वाद ग्रहण करते समय और गुरु के पांव धोते समय भी पत्नी को उत्तर में रहने को कहा गया है। उल्लेखनीय है कि जो धार्मिक कार्य पुरूष प्रधान होते हैं, जैसे-विवाह, कन्यादान, यज्ञ, जातकर्म, नामकरण, अन्नप्राशन, निष्क्रमण आदि में पत्नी पुुरूष के दाई (दक्षिण) ओर रहती है, जबकि स्त्री प्रधान कार्यो में वह पुरूष के वाम (बाई) अंग की तरफ बैठती है। आप जानते ही होंगे कि मौली (लाल नाडा/कलावा/रक्षा सूत्र) स्त्री के बाएं हाथ की कलाई में बांधने का नियम शास्त्रों में लिखा है। ज्योतिषी स्त्रयों के बाएं हाथ की हस्त रेखाएं देखते हैं। वैद्य स्त्रयों की बाएं हाथ की नाडी को छूकर उनका इलाज करते हैं। ये सब बातें भी स्त्री को वामांगी होने का संकेत करती है।
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